जूट मिल नेता ने भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर की शिकायत।
हाजीनगरः हाजी नगर हुकुमचंद जूट मिल एशिया की सबसे बड़ी जूट मिल है। हजारों टन जूट की वार्षिक खपत इस मिल में है। जूट के बोरों एवं दूसरे प्रकार का प्रोडक्ट बनाते समय रेशा के रूप में जूट का कचरा(कतरन) निकलता है। यह कचरा मिल के किसी भी काम में नहीं लगती है। इसलिए जूट की कतरनों को बोर में भरकर मिल के बाहर छाई मैदान में फेंक दिया जाता है। जूट के कचरे से पर्यावरण प्रदूषित होती है। कतरनों का वाजिव निस्तारण के बदले उसे खुले में वैसे ही छोड़ दिया जाता है। जिसका बुरा असर वहां की जनता के स्वास्थ्य पर पड़ता है। मगर जूट मिल प्रबंधन प्रदूषण नियंत्रण के प्रति लापरवाह है।
छाई मैदान जूट मिल की है। बगल में ही कच्ची और पक्की लाइन नामक जूट मिल बस्ती है। जहां सैकड़ों झोपड़ियां है। इन झोपड़ियों में निम्न आय वाले मजदूर अथवा उनके परिवार परिजन रहते है। दूसरे पेशा से भी जुड़े कुछ लोग रहते है। जूट की कतरने उन लोगों के लिए समस्या बनी है। सालों से यहां कतरनों की ढेर पड़ी है। बारिश की पानी में भीगने से इसमें से बदबू निकलती है। जो हमेशा चारों तरफ फैली रहती है। वहीं गर्मी के दिनों में कड़ी धूप में सूखने पर कतरने उड़कर लोगों के घर में घुस जाती है। यहां हमेशा महीन रेशा हवा में उड़ते रहती है। नतीजा लोगों सांस के जरिये शरीर में जाती है। ऐसा होना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है। इलाके की महिलाओं का आरोप है कि खाना बनाते समय अथवा पका खाना खाते समय रेशे उड़कर खाना में पड़ती है। इस समस्या से लोग परेशान हैं। यह इलाका हालीशहर नगर पालिका के 19 नंबर वार्ड में है। जहां रेशा फेंकी गई है। वहीं पर मंदिर है। मिल प्रबंधन के लापरवाह रवैया से जनता की धार्मिक भावना आहत है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि वहां कचरा फेंकना से मना करने पर तरह-तरह की धमकी दी जाती है। उन्हें अवैध बाशिंदा बताकर धमकाया जाता है कि जमीन मिल की है। जिस पर रहने वालों ने अवैध कब्जाकर रखा है। इसलिए अपना घर तोड़कर हटा ले। धमकी के डर से वहां के बाशिंदा बड़े स्तर पर विरोध नहीं कर पाते। उनका कहना है कि वहां के सभी निवासी काफी गरीब है। टाली एवं बेड़ा के घर के सामने प्लास्टिक और बोरा टांगकर किसी तरह से गुजर बसर करते है। उनकी आर्थिक कूबत इतनी नहीं है कि किसी दूसरी जगह जाकर घर बना सके।
हुकुमचंद मिल के जूट श्रमिक यूनियन के नेता धीराज झा ने भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर मिल प्रबंधन की लापरवाही की शिकायत किए है। उनकी मांग है के मंत्रालय तत्काल हस्तक्षेप कर मामले की जांच एवं उचित कार्रवाई का निर्देश दे।