सिन्धी वर्ग के इष्ट देव झूलेलाल की आविर्भाव तिथि को उनके समुदाय ने धूमधाम से मनाया। यह उत्सव चेटीचंड के रुप में विख्यात है। यह दिन उनके नववर्ष का पहला दिन होता है। इसलिए चेटीचंड के साथ सिंधी नववर्ष भी मना।

सिंधी पंचायत के प्रधान कमल राय ने बताया कि प्राचीन काल में सिंध देश का शासक मिरखशाह जुल्मी था। उसका निशाना हिन्दू सिंधी वर्ग था। अत्याचार से त्रस्त होकर सिंधी समाज सिंधू नदी के किनारे 40 दिनों तक कठोर जप तप किए। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर नर मत्स्य पर बैठे झूलेलाल देवता प्रकट हुए और उन्हें अत्याचार से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाए। हिन्दू चैत्र माह के द्वितीया को बालक के रुप में जन्म ग्रहण कर भगवान ने आगे चलकर अपने चमत्कारों से अत्याचार से मुक्ति दिलवाए। पंचायत के संयोजक मनोहर हीरुमलानी ने बताया कि चैत्र माह प्रतिपदा का चांद देखने के अगले दिन चेटीचंड उत्सव मनाने की परंपरा है। इस अवसर पर गुरु ग्रंथ साहेब का पाठ, आरती एवं प्रसाद वितरण हुआ। साम को आटा से बनी देवता की मुर्ति को गंगा में विसर्जित किया गया।